Mirabai Chanu (Weightlifting women) Biography, Age, Wiki & Unknown Facts
Mirabai Chanu is an Indian Weightlifting woman. Mirabai Chanu was born on 8 August 1994 at Nongpok Kakching, Imphal East, Manipur, India. She was very famous for weightlifting. At the age of 11, she won first gold medal in local weightlifting competition. She won a Silver medal at 2020 Tokyo Olympics in women’s 49 kg, thereby bringing India its first medal in the event. Lets know more about Mirabai Chanu Biography, Age, Family & Unknown Fact.
Profile |
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Full Name | Saikhom Mirabai Chanu |
Nick Name | Mirabai Chanu |
Landed on Earth | 8 August 1994 |
Birthplace | Nongpok Kakching, Imphal East, Manipur, India |
Age | 27 Years as on 2021 |
Alma Mater |
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Qualification | Not Known |
School | Not Known |
College/University | Not Known |
Profession | Weightlifting |
Family |
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Father | ![]() |
Mother | ![]() |
Four Sisters | ![]() |
Brother | Saikhom Sanatomba Meitei |
Family(Mother,Father Brother, Sister-in law, Four sisters and kids |
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Marital Status, Affairs & More |
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Marital Status | Unmarried |
Affairs/ Boyfriend(s): | No boyfriend |
Physical Stat |
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Height | In Centimeters-150cm In Feet Inches-4’11” In Meters-1.50m |
Weight | 49 Kg |
Eyes Color | Black |
Hair Color | Dark Brown |
Traits & Trivia |
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Nationality | Indian |
Religion | Hinduism’s |
Zodiac Sign | Leo |
Food Habit | Non Vegetarian |
Smoke | No |
Drink | No |
Interests & Favorites |
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Hobbies | Traveling, Listening music |
Food | Kangosi |
Favorite Fruit | Kangosi |
Favorite Lipstick Brand | Mac |
Destination | Goa, Paris |
Net-worth & Social |
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Net-Worth | ₹ 7 Crores (Approx) |
@MirabaiChanu | |
https://www.facebook.com/s.mirabaichanu | |
@mirabai_chanu | |
smirabaichanu@gmail.com |
Recent Titles:-
Year | Category | Medal |
2021 | 49 kg | Olympic Silver Medal |
2020 | 49 kg | Asian Championship Bronze |
2018 | 48 kg | Commonwealth Games Gold |
2017 | 48 kg | World Championship Gold |
Some Unknown Facts of Mirabai Chanu
- Mirabai started her career at very early stage and won her first medal at the age of 11 in local competition. Her ideal is Kunjarani Devi.
- Her professional weightlifting journey began in 2011 when she participated at International Youth Championship at South Asian Junior Games. She won Gold medal in these Games.
- In 2014, she represented India in Commonwealth Games in Glasgow. She won Silver medal in the Games.
- Mirabai was also part of Rio Olympics 2016 but she could not bring result and scored No Valid Result as Mirbai didn’t register a total after failing all three of her Clean and Jerk attempts
- On 31 Aug 2015, Mirabai was appointed Sr Ticket Collector, under Lumiding Division/ Northeast Frontier Railways.
- Mirabai was also part of Rio Olympics 2016 but she could not bring result and scored No Valid Result as Mirbai didn’t register a total after failing all three of her Clean and Jerk attempts.
- In Apr 2018, she was designated as OSD(Sports) under Principal Chief Personnel Officer (PCPO), NFR.
- Mirabai was awarded Rajiv Gandhi Khel Ratna award in 2018.
- She was also awarded Padma Shri in 2018
- After winning Silver medal in Tokyo Olympic in 2021, Mirabai was appointed as Additional Supritendent of Police(Sports).
- She also received ₹2 Crore from Ministry of Railways ₹1 Crore from Manipur government, ₹50 Lakhs from Centre government and ₹40 Lakhs from IOA for winning Silver medal in Tokyo Olympics.
- One night before her final medal round in Tokyo Olympic, she encountered mensentural cramps in the lower abdomen which was unexpected. She was tensed and raised doubt about her focus. But she changed her plans. In an interview, Mirabai added ” As athletes, we face such problems often and we know how to handle them”. Later her chief national coach Vijay Sharma said “We were always targeting gold but this whole issue resulted in Mirabai’s performance taking a hit during final. She missed two lifts which she should have completed. We could have given the Chines lifeter(Gold medal winner) a better fight.
Some Photoes of Mirabai Chanu
An Inspiring Story of Mirabai Chanu
ऐसी कहानियों को एनसीईआरटी के कोर्स में शामिल करना चाहिए।
जब राष्ट्रपति ने खाया एक गरीब भारतीय लड़की का झूठा चावल
……………
यह मीराबाई चानू की कहानी है ।
उस समय उसकी उम्र 10 साल थी यानी कि वर्ष 2004। इम्फाल से 200 किमी दूर नोंगपोक काकचिंग गांव में गरीब परिवार में जन्मी और छह भाई बहनों में सबसे छोटी मीराबाई चानू अपने से चार साल बड़े भाई सैखोम सांतोम्बा मीतेई के साथ पास की पहाड़ी पर लकड़ी बीनने जाती थीं।
एक दिन उसका भाई लकड़ी का गठ्ठर नहीं उठा पाया, लेकिन मीरा ने उसे आसानी से उठा लिया और वह उसे लगभग 2 किमी दूर अपने घर तक ले आई।
शाम को पड़ोस के घर मीराबाई चानू टीवी देखने गई, तो वहां जंगल से उसके भारी गठ्ठर लाने की चर्चा चल पड़ी। उसकी मां बोली,”बेटी आज यदि हमारे पास बैल गाड़ी होती तो तुझे गठ्ठर उठाकर न लाना पड़ता।”
”बैलगाड़ी कितने रूपए की आती है माँं ?” मीराबाई ने पूछा।
”इतने पैसों की जितने कि हम कभी जिंदगी भर देख न पाएंगे।”
”मगर क्यों नहीं देख पाएंगे, क्या पैसा कमाया नहीं जा सकता ? कोई तो तरीका होगा बैलगाड़ी खरीदने के लिए पैसा कमाने का ?” चानू ने पूछा तो तब गांव के एक बुजुर्ग ने कहा, ”तू तो लड़कों से भी अधिक वजन उठा लेती है, यदि वजन उठाने वाली खिलाड़ी बन जाए तो एक दिन जरूर भारी-भारी वजन उठाकर खेल में सोना जीतकर उस मैडल को बेचकर बैलग़ाड़ी खरीद सकती है।”
”अच्छी बात है, मैं सोना जीतकर उसे बेचकर बैलगाड़ी खरीदूंगी।” उसमें आत्मविश्वास था।
उसने वजन उठाने वाले खेल के बारे में जानकारी हासिल की, लेकिन उसके गांव में वेटलिफ्टिंग सेंटर नहीं था, इसलिए उसने रोज़ ट्रेन से 60 किलोमीटर का सफर तय करने की सोची।
शुरुआत उन्होंने इंफाल के खुमन लंपक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से की।
एक दिन उसकी रेल लेट हो गयी.. रात का समय हो गया। शहर में उसका कोई ठिकाना न था, कोई उसे जानता भी न था। उसने सोचा कि किसी मन्दिर में शरण ले लेगी और कल अभ्यास करके फिर अगले दिन शाम को गांव चली जाएगी।
एक अधूरा निर्माण हुआ भवन उसने देखा जिस पर आर्य समाज मन्दिर लिखा हुआ था। वह उसमें चली गई। वहां उसे एक पुरोहित मिला, जिसे उसने बाबा कहकर पुकारा और रात को शरण मांगी।
”बेटी मैं आपको शरण नहीं दे सकता, यह मन्दिर है और यहां एक ही कमरे पर छत है, जिसमें मैं सोता हूँ । दूसरे कमरे पर छत अभी डली नहीं, एंगल पड़ गई हैं, पत्थर की सिल्लियां आई पड़ी हैं लेकिन पैसे खत्म हो गए। तुम कहीं और शरण ले लो।”
”मैं रात में कहाँ जाउँगी बाबा,” मीराबाई आगे बोली, ”मुझे बिना छत के कमरे में ही रहने की इजाजत दे दो।”
”अच्छी बात है बेटी, जैसी तेरी मर्जी।” बाबा ने कहा।
वह उस कमरे में माटी एकसार करके उसके उपर ही सो गई, अभी कमरे में फर्श तो डला नहीं था। जब छत नहीं थी तो फर्श कहां से होता भला। लेकिन रात के समय बूंदाबांदी शुरू हो गई और उसकी आंख खुल गई।
मीराबाई ने छत की ओर देखा। दीवारों पर उपर लोहे की एंगल लगी हुई थी, लेकिन सिल्लियां तो नीचे थी। आधा अधूरा जीना भी बना हुआ था। उसने नीचे से पत्थर की सिल्लिया उठाई और उपर एंगल पर जाकर रख दी और फिर थोड़ी ही देर में दर्जनों सिल्लियां कक्ष की दीवारों के उपर लगी एंगल पर रखते हुए कमरे को छाप दिया।
उसके बाद वहां एक बरसाती पन्नी पड़ी थी वह सिल्लियों पर डालकर नीचे से फावड़ा और तसला उठाकर मिट्टी भर-भरकर ऊपर छत पर सिल्लियों पर डाल दी। इस प्रकार मीराबाई ने छत तैयार कर दी।
बारिश तेज हो गई और वह अपने कमरे में आ गई। अब उसे भीगने का डर न था, क्योंकि उसने उस कमरे की छत खुद ही बना डाली थी।
अगले दिन बाबा को जब सुबह पता चला कि मीराबाई ने कमरे की छत डाल दी तो उसे आश्चर्य हुआ और उसने उसे मन्दिर में हमेशा के लिए शरण दे दी, ताकि वह खेल की तैयारी वहीं रहकर कर सके, क्योंकि वहाँं से खुमन लंपक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स निकट था।
बाबा उसके लिए खुद चावल तैयार करके खिलाते और मीराबाई ने कक्षों को गाय के गोबर और पीली माटी से लिपकर सुन्दर बना दिया था।
समय मिलने पर बाबा उसे एक किताब थमा देते जिसे वह पढ़कर सुनाया करती और उस किताब से उसके अन्दर धर्म के प्रति आस्था तो जागी ही साथ ही देशभक्ति भी जाग उठी।
इसके बाद मीराबाई चानू 11 साल की उम्र में अंडर-15 चैंपियन बन गई और 17 साल की उम्र में जूनियर चैंपियन का खिताब अपने नाम किया।
लोहे की बार खरीदना परिवार के लिए भारी था। मानसिक रूप से परेशान हो उठी मीराबाई ने यह समस्या बाबा से बताई, तो बाबा बोले, ”बेटी चिंता न करो, शाम तक आओगी तो बार तैयार मिलेगा।”
वह शाम तक आई तो बाबा ने बांस की बार बनाकर तैयार कर दी, ताकि वह अभ्यास कर सके।
बाबा ने उनकी भेंट कुंजुरानी से करवाई। उन दिनों मणिपुर की महिला वेटलिफ़्टर कुंजुरानी देवी स्टार थीं और एथेंस ओलंपिक में खेलने गई थीं।
इसके बाद तो मीराबाई ने कुंजुरानी को अपना आदर्श मान लिया और कुंजुरानी ने बाबा के आग्रह पर इसकी हर संभव सहायता करने का बीड़ा उठाया।
जिस कुंजुरानी को देखकर मीरा के मन में विश्व चैंपियन बनने का सपना जागा था, अपनी उसी आइडल के 12 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को मीरा ने 2016 में तोड़ा, वह भी 192 किलोग्राम वज़न उठाकर।
2017 में विश्व भारोत्तोलन चैम्पियनशिप, अनाहाइम, कैलीफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका में उसे भाग लेने का अवसर मिला।
मुकाबले से पहले एक सहभोज में उसे भाग लेना पड़ा। सहभोज में अमेरिकी राष्ट्रपति मुख्य अतिथि थे।
राष्ट्रपति ने देखा कि मीराबाई को उसके सामने ही पुराने बर्तनों में चावल परोसा गया, जबकि सब होटल के शानदार बर्तनों में शाही भोजन का लुत्फ ले रहे थे।
राष्ट्रपति ने प्रश्न किया, ”इस खिलाड़ी को पुराने बर्तनों में चावल क्यों परोसा गया, क्या हमारा देश इतना गरीब है कि एक लड़की के लिए बर्तन कम पड़ गए, या फिर इससे भेदभाव किया जा रहा है, यह अछूत है क्या ?”
”नहीं महामहिम ऐसी बात नहीं है,” उसे खाना परोस रहे लोगों से जवाब मिला, ” इसका नाम मीराबाई है। यह जिस भी देश में जाती है, वहाँं अपने देश भारत के चावल ले जाती है। यह विदेश में जहाँ भी होती है, भारत के ही चावल उबालकर खाती है। यहाँ भी ये चावल खुद ही अपने कमरे से उबालकर लाई है ।”
”ऐसा क्यों ?” राष्ट्रपति ने मीराबाई की ओर देखते हुए उससे पूछा।
”महामहिम, मेरे देश का अन्न खाने के लिए देवता भी तरसते हैं, इसलिए मैं अपने ही देश का अन्न खाती हूँ।”
”ओह् बहुत देशभक्त हो तुम, जिस गांव में तुम्हारा जन्म हुआ, भारत में जाकर उस गांव के एकबार अवश्य दर्शन करूंगा।” राष्ट्रपति बोले।
”महामहिम इसके लिए मेरे गांव में जाने की क्या जरूरत है ?”
”क्यों ?”
”मेरा गांव मेरे साथ है, मैं उसके दर्शन यहीं करा देती हूँं।”
”अच्छा कराइए दर्शन!” कहते हुए उस मूर्ख लड़की की बात पर हंस पड़े राष्ट्रपति।
मीराबाई अपने साथ हैंडबैग लिए हुए थी, उसने उसमें से एक पोटली खोली, फिर उसे पहले खुद माथे से लगाया फिर राष्ट्रपति की ओर करते हुए बोली, ”यह रहा मेरा पावन गांव और महान देश।”
”यह क्या है ?” राष्ट्रपति पोटली देखते हुए बोले, ”इसमें तो मिट्टी है ?”
”हाँ यह मेरे गांव की पावन मिट्टी है, इसमें मेरे देश के देशभक्तों का लहू मिला हुआ, सरदार भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद का लहू इस मिट्टी में मिला हुआ है, इसलिए यह मिट्टी नहीं, मेरा सम्पूर्ण भारत हैं…”
”ऐसी शिक्षा तुमने किस विश्वविद्यालय से पाई चानू ?”
”महामहिम ऐसी शिक्षा विश्वविद्यालय में नहीं दी जाती, विश्वविद्यालय में तो मैकाले की शिक्षा दी जाती है, ऐसी शिक्षा तो गुरु के चरणों में मिलती है, मुझे आर्य समाज में हवन करने वाले बाबा से यह शिक्षा मिली है, मैं उन्हें सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर सुनाती थी, उसी से मुझे देशभक्ति की प्रेरणा मिली।”
”सत्यार्थ प्रकाश ?”
”हाँं सत्यार्थ प्रकाश,” चानू ने अपने हैंडबैग से सत्यार्थ प्रकाश की प्रति निकाली और राष्ट्रपति को थमा दी, ”आप रख लीजिए मैं हवन करने वाले बाबा से और ले लूंगी।”
”कल गोल्डमैडल तुम्हीं जितोगी,” राष्ट्रपति आगे बोले, ”मैंने पढ़ा है कि तुम्हारे भगवान हनुमानजी ने पहाड़ हाथों पर उठा लिया था, लेकिन कल यदि तुम्हारे मुकाबले हनुमानजी भी आ जाएं तो भी तुम ही जितोगी…तुम्हारा भगवान भी हार जाएगा, तुम्हारे सामने कल।”
राष्ट्रपति ने वह किताब एक अधिकारी को देते हुए आदेश दिया, ”इस किताब को अनुसंधान के लिए भेज दो कि इसमें क्या है, जिसे पढ़ने के बाद इस लड़की में इतनी देशभक्ति उबाल मारने लगी कि अपनी ही धरती के चावल लाकर हमारे सबसे बड़े होटल में उबालकर खाने लगी।”
चानू चावल खा चुकी थी, उसमें एक चावल कहीं लगा रह गया, तो राष्ट्रपति ने उसकी प्लेट से वह चावल का दाना उठाया और मुँह में डालकर उठकर चलते बने।
”बस मुख से यही निकला, ”यकीनन कल का गोल्ड मैडल यही लड़की जितेगी, देवभूमि का अन्न खाती है यह।”
और अगले दिन मीराबाई ने स्वर्ण पदक जीत ही लिया, लेकिन किसी को इस पर आश्चर्य नहीं था, सिवाय भारत की जनता के…
अमेरिका तो पहले ही जान चुका था कि वह जीतेगी, बीबीसी जीतने से पहले ही लीड़ खबर बना चुका था ।
जीतते ही बीबीसी पाठकों के सामने था, जबकि भारतीय मीडिया अभी तक लीड खबर आने का इंतजार कर रही थी।
इसके बाद चानू ने 196 किग्रा, जिसमे 86 kg स्नैच में तथा 110 किग्रा क्लीन एण्ड जर्क में था, का वजन उठाकर भारत को 2018 राष्ट्रमण्डल खेलों का पहला स्वर्ण पदक दिलाया।
इसके साथ ही उन्होंने 48 किग्रा श्रेणी का राष्ट्रमण्डल खेलों का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया।
2018 राष्ट्रमण्डल खेलों में विश्व कीर्तिमान के साथ स्वर्ण जीतने पर मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने ₹15 लाख की नकद धनराशि देने की घोषणा की।
2018 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया।
यह पुरस्कार मिलने पर मीराबाई ने सबसे पहले अपने घर के लिए एक बैलगाड़ी खरीदी और बाबा के मन्दिर को पक्का करने के लिए एक लाख रुपए उन्हें गुरु दक्षिणा में दिए।
‘वेद वृक्ष की छांव तले पुस्तक का एक अंश’
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