हमें बेटी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे की जरूरत क्यों पड़ी ?
हम 21वीं सदी में हैऔर हमें आज भी शहर शहर जाकर बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा इस्तेमाल करना पड़ रहा है । ऐसा क्यों ?
हम आज भी बेटियों को बेटों के मुकाबले कम अहमियत देते हैं । दुनिया में आज के दौर में बेटियां हर जगह अपना परचम लहरा रही है, फिर भी वह इज्जत नहीं मिल रही जो बेटों को मिलती आ रही है। क्यों आरक्षण दिया गया है बेटियों को हर जगह? बेटियां लाचार नहीं हैं जो उन्हें आरक्षण दिया जाए । हमारे देश में आज भी कुछ राज्य ऐसे होंगे जहाँ बेटियों की संख्या बेटों से बहुत कम है । आज भी कुछ राज्यों में गर्भ में ही बेटियों को मार दिया जाता है । क्यों होता है ऐसा? आज भी अगर किसी के घर में दूसरी बेटी जन्म ले लेती है तो लोग उस नवजात बच्चे को ऐसी नजरों से देखते हैं जैसे उस बच्चे ने इस घर में क्या इस धरती पर आकर ही गुनाह कर दिया हो । इतिहास गवाह है कि अगर संसार में बेटियां नहीं होंगी तो यह संसार नहीं चल सकता ।

हमारे देश में आज भी ऐसे राज्य हैं जहां बेटा और बेटी में अंतर किया जाता है। बेटे को हमेशा मान सम्मान दिया जाता है और बेटी को हमेशा फटकार दी जाती है। कुछ लोग तो यह भी कह देते हैं कि बेटियां पराया धन है। हमारा देश पुरुष प्रधान देश है। यहां अगर किसी औरत ने किसी पुरुष को कुछ बोल दिया तो वह औरत सब की दुश्मन बन जाती है। पुरुष की गरिमा को ठेस पहुंचती है। और औरत संस्कार हीन हो जाती है। जवाब देने वाली हो जाती है । उस औरत को अहंकारी तक बोल दिया जाता है। पति को सब माफ ,पत्नी से मारपीट करें, शराब पीकर घर आए सब माफ और अगर पत्नी ने कुछ कह दिया तो पुरुष की तो गरिमा पर बात आ जाती है। औरतों को कोई हक नहीं अपनी बात कहने का अपना कोई स्टैंड लेने का और अगर औरत जॉब करने लग गई और पुरूष से ज्यादा पैसे कमाने लगी तब तो दोनों कभी खुश रह नहीं सकते। जब बेटी थी तब मम्मी पापा की आज्ञा के बिना कहीं नहीं जा सकती थी फिर पत्नी बनी तो पति की आज्ञा के बिना कहीं नहीं जा सकती थी। और बहू बनी तो सास ससुर की आज्ञा लेनी पड़ेगी और जब मां बनी तो बच्चों की आज्ञा उस बेटी की उस पत्नी की उस बहू की और उस माँ की अपनी कोई इच्छा ही नहीं है, वह क्या जिंदगी दूसरों के लिए जीए ।
जरूरत सोच बदलने की
हम जी तो 21 वी सदी में लेकिन अभी भी हमारी सोच बहुत पिछड़ी हुई है ,पहले तो हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी, उसके बाद हम अपने बच्चों में फर्क करना छोड़ेंगे और शायद मुझे ऐसा लगता है कि हमें एक और जन्म लेना पड़ेगा अपनी सोच बदलने के लिए क्योंकि एक ओर दो के सोच बदलने से कुछ नहीं होगा पूरे समाज को अपनी सोच बदलने की जरूरत है। क्योंकि आज भी हम रूढ़िवादी सोच में बंधे हुए हैं। हम अभी भी खुद के बेटा और बेटी के फर्क को नहीं मिटा पाए हैं। हम आज भी वहीं खड़े हैं जहां पर हमारे दादा दादी और पुराने जमाने के लोग थे हमारी सोच आज भी वही है । बेटी पराया धन है और कुछ लोग तो बेटियों को कूड़ा बोलते हैं । हमें अपनी सोच बदलने की बहुत बहुत बहुत जरूरत है ॥धन्यवाद॥
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